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कविता

किसे मालूम

बेल्‍ला अख्‍मादूलिना


किसे मालूम-कब तक
एक क्षण या अनंत तक
भटकते रहना है मुझे इस संसार में।

इस क्षण और उस अनंत के लिए
धन्‍यवाद देती हूँ मैं इस संसार को।

कुछ भी हो, अभिशाप नहीं
बल्कि दूँगी आशीर्वाद इस सहजता को :
तुम्‍हारे दु:खों की क्षणिकता
और अपने अंत की
इस खामोशी को।

 


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